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अब्बा ने क्या सोचकर आरिफ़ की बात मान ली?
अब्बा ने सोचा – “रोज़ हर आदमी बच्चों पर हुक्म चलाता है। अत: आज हुक्म चलाने का मौका इन्हें दिया जाए।” इसलिए उन्होंने आरिफ़ की बात मान ली।
वह एक दिन बहुत अनोखा था जब बच्चों को बड़ों के अधिकार मिल गए थे। वह दिन बीत जाने के बाद इन्होंने क्या सोचा होगा–
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वह एक दिन सबके लिए बहुत अनोखा था। वह दिन बीत जाने के बाद इन लोगों ने इस प्रकार का सोचा होगा –
अगर तुम्हें घर में एक दिन के लिए सारे अधिकार दे दिए जाएँ तो तुम क्या-क्या करोगी?
अगर हमें एक दिन के लिए सारे अधिकार दे दिए जाएँ, तो हम अपने मन की सारी बातें पूरी करेगें। बड़ों पर रौब जमाएँगे और यही कोशिश रहेगी कि घर पर कोई गलत काम न हो।
कहानी में ऐसे कई काम बताए गए हैं जो बड़े लोग आरिफ़ और सलीम से करने के लिए कहते थे। तुम्हारे विचार से उनमें से कौन-कौन से काम उन्हें बिना शिकायत किए कर लेने चाहिए थे और कौन-कौन से कामों के लिए मना कर देना चाहिए था?
आरिफ़ और सलीम को सुबह जल्दी उठना चाहिए और रात को समय पर सोना चाहिए। इन कामों के लिए उन्हें किसी को शिकायत का मौका नहीं देना चाहिए। यदि उन्हें गाने का मन और घर में रहकर खेलने का मन करे तो दूसरों के मना करने पर उन कामों को करना चाहिए।
“दोनों घंटों बैठकर इन पाबंदियों से बच निकलने की तरकीबें सोचा करते थे।”
तुम्हारे विचार से वे कौन कौन-सी तरकीबें सोचते होंगे?
वे निम्नलिखित तरकीबें सोचते होंगे : –
(क) वे दोनों सोचते होंगे कि काश हमारे पास एक जादू की छड़ी आ जाती। इससे वे सबके मुँह में ताले लगा देते। इस तरह उनको कोई कुछ नहीं कहता।
(ख) काश सबको अपना गुलाम बना लेते और स्वयं मज़े में रहते।
(ग) काश वे किसी तरह सबसे बड़े हो जाते और बड़ों पर हुक्म चलाते।
“दोनों घंटों बैठकर इन पाबंदियों से बच निकलने की तरकीबें सोचा करते थे।”
कौन-सी तरकीब से उनकी इच्छा पूरी हो गई थी?
दोनों ने तरकीब निकाली की वह अब्बा के पास जाकर दरखास्त देगें कि उन्हें बड़ों के सारे अधिकार दे दिए जाएँ और सब बड़े छोटे बन जाएँ। उनकी यह तरकीब काम आई। उनके अब्बा ने एक दिन के लिए उनकी दरखास्त मान ली थी जिससे उनकी इच्छा पूरी हो गई थी।
“दोनों घंटों बैठकर इन पाबंदियों से बच निकलने की तरकीबें सोचा करते थे।”
क्या तुम उन दोनों को इस तरकीब से भी अच्छी तरकीब सुझा सकती हो?
मैं अपने परिवार के सामने अपनी समस्या रखती और उन्हें बताती की उनके व्यवहार से हमें बड़ी परेशानी होती है।
“…. आज तो उनके सारे अधिकार छीने जा चुके हैं।”
अम्मी के अधिकार किसने छीन लिए थे?
अम्मी के अधिकार आरिफ़ और सलीम ने छीन लिए थे।
“…. आज तो उनके सारे अधिकार छीने जा चुके हैं।”
क्या उन्हें अम्मी के अधिकार छीनने चाहिए थे?
आरिफ़ और सलीम को अम्मी के अधिकार नहीं छीनने चाहिए थे। उन्हें चाहिए था कि अब्बा और अम्मी के साथ बैठकर अपनी बात कहते और समस्या को सुलझाने का प्रयत्न करते।
“…. आज तो उनके सारे अधिकार छीने जा चुके हैं।”
उन्होंने अम्मी के कौन-कौन से अधिकार छीने होंगे?
आरिफ़ और सलीम ने माँ के ये अधिकार छीन लिए होगें।- 1. घर में अपने अनुसार खाना पकाने का अधिकार। 2. घर के हर छोटे-बड़े कामों को करवाने के अधिकार। 3. सहेलियों से बात करने का अधिकार। 4. दोपहर में सोने का अधिकार।
‘बादशाहत’ क्या होती है? चर्चा करो।
यह शब्द ‘बादशाह’ शब्द से बना है। पुराने समय में बादशाह (राजा) का हुक्म सबके लिए महत्वपूर्ण होता था। वह संपूर्ण प्रजा पर राज करता था। सब उससे डरते और उसका हुक्म मानते थे। बादशाह के इसी अधिकार को ‘बादशाहत’ कहते हैँ।
तुम्हारे विचार से इस कहानी का नाम ‘एक दिन की बादशाहत’ क्यों रखा गया है? तुम भी अपने मन से सोचकर कहानी को कोई शीर्षक दो।
हमारे विचार से इस कहानी का नाम एक दिन की बादशाहत इसलिए रखा गया क्योंकि आरिफ़ और सलीम को सब बड़ों पर हुकुम चलाने का अधिकार मिला था। जिसके कारण उन्होंने सारे बड़ों को उनकी गलतियों का एहसास दिलाया। अत: इसका नाम “एक दिन की बादशाहत” पड़ा। इस कहानी के लिए अन्य शीर्षक यह भी हो सकता है “बड़ों को सबक”।
कहानी में उस दिन बच्चों को सारे बड़ों वाले काम करने पड़े थे। ऐसे में कौन एक दिन का असली ‘बादशाह’ बन गया था?
इस कहानी में आरिफ़ और सलीम ने सारे बड़ों से काम करवाया था। उन्होंने बड़ों को छोटा बना दिया और स्वयं सारे बड़ों वाले काम किए। अत: इस कहानी में आरिफ़ और सलीम एक दिन के असली बादशाह बन गए थे।
“रोज़ की तरह आज वह तर माल अपने लिए न रख सकती थी।”
कहानी में किन-किन चीज़ों को तर माल कहा गया है॑?
कहानी में अंडे और मक्खन को तर माल कहा गया है॑।
“रोज़ की तरह आज वह तर माल अपने लिए न रख सकती थी।”
इन चीज़ों के अलावा और किन-किन चीज़ों को ‘तर माल’ कहा जा सकता है?
मीट, गाजर का हलवा, पूरी, मिठाइयाँ तथा इसी तरह के अनेक पकवानों को तरमाल कहा जा सकता है।
“रोज़ की तरह आज वह तर माल अपने लिए न रख सकती थी।”
कुछ ऐसी चीज़ों के नाम भी बताओ, जो तुम्हें ‘तर माल’ नहीं लगतीं।
दाल, हल्की सब्जियाँ, दलिया, बिना घी की रोटी आदि।
“रोज़ की तरह आज वह तर माल अपने लिए न रख सकती थी।”
इन चीज़ों को तुम क्या नाम देना चाहोगी? सुझाओ।
इन चीज़ों को मैं “मरीज़ों का खाना” कहूँगी।
“बिल्कुल इसी तरह तो वह आरिफ़ और सलीम से उनकी मनपसंद कमीज़ उतरवा कर निहायत बेकार कपड़े पहनने का हुक्म लगाया करती हैं।”
तुम्हें भी अपना कोई खास कपड़ा सबसे अच्छा लगता होगा। उस कपड़े के बारे में बताओ। वह तुम्हें सबसे अच्छा क्यों लगता है?
छात्र स्वयं कर सकते हैं। जैसे:– मुझे रेशम की कमीज़ पसंद है। उसका कपड़ा और रंग मुझे अच्छा लगता है।
“बिल्कुल इसी तरह तो वह आरिफ़ और सलीम से उनकी मनपसंद कमीज़ उतरवा कर निहायत बेकार कपड़े पहनने का हुक्म लगाया करती हैं।”
कौन-कौन सी चीज़ें तुम्हें बिल्कुल बेकार लगती हैं?
(क) पहनने की चीज़ें ………………………………………………….
(ख) खाने-पीने की चीज़ें ………………………………………………….
(ग) करने के काम ………………………………………………….
(घ) खेल ………………………………………………….
इस प्रश्न का उत्तर भी छात्र स्वयं अपने अनुसार दे सकते हैं: उदाहरण के लिए।
(क) पहनने की चीज़ें – पुराने, ढीले, रंग उतरे और फटे कपड़े अच्छे नहीं लगते।
(ख) खाने-पीने की चीज़ें – अधिक मीठी, मिर्ची वाली या खट्टी चीज़ें पसंद नहीं हैं।
(ग) करने के काम – घर के काम, अधिक पढ़ना आदि।
(घ) खेल – छात्र अपनी इच्छानुसार लिखें।
(क) “इतनी भारी साड़ी क्यों पहनी?”
यहाँ पर ‘भारी साड़ी’ से क्या मतलब है?
(ख) |
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ऊपर ‘भारी’ विशेषण का चार अलग-अलग संज्ञाओं के साथ इस्तेमाल किया गया है। इन चारों में ‘भारी’ का अर्थ एक-सा नहीं है। इनमें क्या अंतर है?
(ग) ‘भारी’ की तरह हल्का का भी अलग-अलग अर्थों में इस्तेमाल करो।
(क) साड़ी पर बेल बूटों की कढ़ाई थी इसलिए उसे भारी साड़ी कहा गया है। इनके कारण भी साड़ी का वजन भारी हो जाता है।
(ख)
(ग) ‘हल्का’ शब्द का प्रयोग भी अलग-अलग अर्थों में इस प्रकार किया जा सकता है; जैसे- हल्का डिब्बा, हल्की बारिश, हल्का भोजन, हलका बर्तन इत्यादि।
आरिफ़ और सलीम दो बच्चे हैं जो हमेशा परेशान रहते हैं इस बात से कि उनके घरवाले हर समय किसी न किसी बात पर उन्हें टोकते रहते हैं। ऐसा करो, वैसा मत करो’ हमेशा उनकी कानों में पड़ता रहता है। यदि बाहर चले गए तो अम्मी पूछ बैठतीं कि बाहर क्यों हो और अगर अंदर रहें तो दादी बोल पड़ती बाहर जाओ यहाँ शोर मत मचाओ। दोनों बच्चों की जान मुसीबत में थी। हर वक्त पाबंदी, हर वक्त तकरार। अपनी मर्जी कभी भी नहीं चलती। एक दिन बच्चों के दिमाग में एक तरकीब आई। वे झट अब्बा के पास पहुँच गए और उनके सामने दरखास्त पेश कर दिए–एक दिन के लिए उन्हें बड़ों के सारे अधिकार दे दिए जाएं और सब बड़े छोटे बन जाएँ। अब्बा ने उनकी बात मान ली और अगले दिन सुबह से वह बात लागू भी हो गई। आरिफ ने अम्मी को झिंझोड़ डाला, “अम्मी, जल्दी उठिए, नाश्ता तैयार कीजिए!” अम्मी को गुस्सा तो बहुत आया लेकिन उस दिन के लिए उनके सारे अधिकार छीने जा चुके थे। अब दादी की बारी थी। जैसे ही उन्होंने बादाम का हरीरा पीना शुरू किया, आरिफ ने उन्हें रोका, “दादी! कितना हरीरा पिएँगी आप… पेट फट जाएगा!” इसी प्रकार आरिफ ने खानसामे को आदेश देकर अपने सामने अंडे और मक्खन रखवाया और घर के बाकी सदस्यों को दलिया और दूध-बिस्कुट देने को कहा। आपा भी बेबस थीं उस दिन। खाने की मेज पर सलीम ने अम्मी को टोका, “अम्मी, जरा अपने दाँत देखिए, पान खाने से कितने गंदे हो रहे हैं।” और अम्मी के लाख कहने पर कि वे अपने दाँत माँज चुकी हैं, सलीम ने ज़बरदस्ती कंधा पकड़कर उन्हें उठा दिया और गुसलखाने में भेज दिया। सलीम अब अब्बा की तरफ मुड़ा, “… कल कपड़े पहने थे और आज इतने मैले कर डाले!” अब्बा को हँसी-आ गई क्योंकि दोनों बच्चे बड़ों की सही नकल उतार रहे थे। दस बजते ही आरिफ़ चिल्लाने लगा, “अब्बा, जल्दी ऑफिस जाइए।” इस बार अब्बा गुस्सा हो गए। थोड़ी देर बाद खानसामा बेगम से यह पूछने के लिए आया कि खाने में क्या बनेगा, अम्मी को याद नहीं था कि उस दिन के लिए उन्हें अपने अधिकारों का प्रयोग नहीं करना है और उन्होंने खानसामे को आदेश देना शुरू कर दिया, “आलू, गोश्त ……” सलीम तुरंत आगे बढ़ आया और अम्मी की नकल उतारते हुए बोला, आज ये चीजें नहीं पकेंगी! आज गुलाब जामुन, गाजर का हलवा और मीठे चावल पकाओ!” इसी समय दादी किसी से तू-तू मैं-मैं किए जा रही थीं। “ओफ्फो! दादी तो शोर के मारे दिमाग पिघलाए दे रही हैं!” आरिफ ने दादी की तरह दोनों हाथों में सिर थामकर कहा। दादी खून का चूंट पीकर रह गईं। कॉलेज का वक्त हो जाने पर भाई जान ने कहा, “अम्मी, शाम को देर से आऊँगा, दोस्तों के साथ फिल्म देखने ज़ाना है।” “खबरदार!” आरिफ ने आँखें निकालकर उन्हें धमकाया!” कोई जरूरत नहीं फिल्म देखने की! इम्तिहान करीब है।” तभी बच्चों की नजर आपा पर पड़ गई। सलीम उनका गौर से मुआयना करके बोला, “इतनी भारी साड़ी क्यों पहनी? शाम तक गारत हो आएगी।… आज वह सफेद वॉयल की साड़ी पहनना।” आपा ने कहा, “हमारे कॉलेज में आज फंक्शन है।” “हुआ करे … मैं क्या कह रहा हूं … सुना नहीं …?” अपनी इतनी अच्छी नकल देखकर आपा शर्मिंदा हो गईं। इस तरह आदेश देते-देते वह (एक) दिन बीत गया। दूसरी सुबह हो गई। सलीम की आँख खुली तो आपा नाश्ते की मेज सज़ाए उन दोनों के उठने का इंतज़ार कर रही थी। अम्मी ने खानसामे को हर खाने के साथ एक मीठी चीज बनाने का आदेश दे दिया। अब्बा का भी रुख अब बदल गया था।