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निबंध से
प्रश्न 1.
खानपान की मिश्रित संस्कृति से लेखक का क्या मतलब है? अपने घर के उदाहरण देकर इसकी व्याख्या करें? [Imp.]
उत्तर
खानपान की मिश्रित संस्कृति से लेखक का तात्पर्य है सभी प्रांतों में खानपान के आधार पर मेलजोल होना। भारत में आजादी के बाद उद्योग-धंधों, नौकरियों के तबादलों के कारण खानपान की चीजें एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश में पहुँची हैं। लोगों ने अपनी पसंद के आधार पर एक-दूसरे प्रांत की खाने की चीजों को अपने भोज्य पदार्थों में शामिल किया है। जैसे आज दक्षिण भारत के व्यंजन इडली-डोसा-साँभर-रसम उत्तर भारत में चाव से खाए जाते हैं और उत्तर भारत के ढाबे सारे भारत में महत्त्व पाते हैं। यहाँ तक कि पश्चिमी सभ्यता के व्यंजन बर्गर, नूडल्स का चलन भी बहुत बढ़ा है।
मेरा घर महाराष्ट्र में है। मैं मराठी परिवार से हूँ। मछली-चावल हमारा मुख्य भोजन है लेकिन हमारे घर में मछली-चावल से ज्यादा इडली-साँभर, चावल-चने-राजमाँ, पूरी-आलू, बर्गर व नूडल्स आदि अधिक पसंद किए जाते हैं। यहाँ तक कि हम यह सब बाज़ार से न लाकर घर में ही बनाते हैं क्योंकि आज हर प्रदेश के व्यंजन बनाने की पुस्तकें भी बाजार में उपलब्ध रहती हैं।
प्रश्न 2.
खानपान में बदलाव के कौन से फायदे हैं? फिर लेखक इस बदलाव को लेकर चिंतित क्यों है?
उत्तर-
खानपान में बदलाव के अनेक फायदे हैं। मसलन इससे स्थानीय व्यंजनों का प्रचार-प्रसार बढ़ गया है। राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा मिलता है। अब स्थानीय व्यंजन कभी भी किसी जगह ढाबों में उपलब्ध होता है। मसलन दक्षिण भारतीय व्यंजन इडली डोसा अब उत्तर भारत में हमें आसानी से मिल जाता है। राष्ट्रीय एकता को बढ़ाने में मदद मिली है।
अब हम एक प्रकार का ही खाना नहीं खाते, बल्कि उसमें विविधता का समावेश हो गया है।
समय की बचत होती है। जैसे फास्ट फूड तुरंत तैयार होता है। उपरोक्त फायदों के बावजूद लेखक इस परिवर्तन को लेकर काफ़ी चिंतित है, क्योंकि लोग स्थानीय व्यंजनों को भूलते जा रहे हैं। वे बाजारों से गायब होते जा रहे हैं।
नई पीढ़ी विदेशी व्यंजनों को खाना अधिक पसंद करती है और उसको अधिक महत्त्व देती है।
अब स्थानीय व्यंजन तथा पकवान होटलों की वस्तु बनते जा रहे हैं। इन व्यंजनों का चलन कम होता जा रहा है, जिससे स्थानीय व्यंजनों के बारे में जानकारी ही नहीं, खाद्य पदार्थों में शुद्धता और गुणवत्ता की कमी होती जा रही है। स्थानीय व्यंजनों के स्वरूप बदलते जा रहे हैं। जिससे स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।
प्रश्न 3.
खानपान के मामले में स्थानीयता का क्या अर्थ है?
उत्तर
खानपान के मामले में स्थानीयता का अर्थ है, किसी विशेष स्थान के खाने-पीने का विशेष व्यंजन। जिसका प्रचलन दूर-दूर तक हो। जैसे-मुंबई की पाव-भाजी, दिल्ली के छोले-कुल्चे, मथुरा के पेडे व आगरे के पेठे-नमकीन आदि। पहले स्थानीय व्यंजनों का अत्यधिक चलन था। हर प्रदेश में किसी-न-किसी विशेष स्थान का कोई-न-कोई व्यंजन अवश्य प्रसिद्ध होता था लेकिन आज खानपान की मिश्रित संस्कृति ने लोगों को खाने-पीने के व्यंजनों में इतने विकल्प दे दिए हैं कि स्थानीय व्यंजन प्रायः लुप्त होते जा रहे हैं। आधुनिक पीढ़ी तो कई व्यंजनों के नामों से भी, अपरिचित है। दूसरी ओर महँगाई बढ़ने के कारण इन व्यंजनों की गुणवत्ता में कमी होने से भी लोगों का रुझान इनकी ओर कम होता जा रहा है।