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NCERT Solutions for Class 5 Hindi छोटी सी हमारी नदी


Back Exercise

Page No 135:

Question 1:

इस कविता के पद में कौन-कौन से शब्द तुकांत हैं? उन्हें छाँटो।

Answer:

घार-पार, चालू-ढालू, नाम-घाम, रेती-देती, नहाना-छाना, रोला-टोला, उतराती-दन्नाती।

Question 2:

किस शब्द से पता चलता है कि नदी के किनारे जानवर भी जाते थे?

Answer:

‘पार जाते ढोर डंगर’ से पता चलता है कि नदी के किनारे जानवर भी जाते थे।

Question 3:

इस नदी के तट की क्या खासियत थी?

Answer:

इस नदी के तट ऊँचे थे।

Question 4:

अमराई दूजे किनारे ………………… चल देतीं।

कविता की ये पंक्तियाँ नदी किनारे का जीता-जागता वर्णन करती है। तुम भी निम्नलिखित में से किसी एक का वर्णन अपने शब्दों में करो –

  • हफ़्ते में एक बार लगने वाला हाट
  • तुम्हारे शहर या गाँव की सबसे ज़्यादा चहल-पहल वाली जगह
  • तुम्हारे घर की खिड़की या दरवाज़े से दिखाई देने वाला बाहर का दृश्य
  • ऐसी जगह का दृश्य जहाँ कोई बड़ी इमारत बन रही हो

 

Answer:

  • हर क्षेत्र में एक छोटा बाज़ार लगता है। जिसमें हर तरह का घरेलू सामान मिलता है। हमारा हाट बाज़ार सोमवार को लगता है। यहाँ की रौनक देखने वाली होती है। बच्चे से लेकर बड़े तक इस बाज़ार का हिस्सा होते हैं। हम अकसर यहाँ जाते हैं। यहाँ से हम सप्ताहभर का सामान लाते हैं। मैं माताजी के साथ यहाँ पर चाट-पकौड़ी, जलेबी और आइसक्रीम खाने जाती हूँ।
  • मेरे घर के पास एक बहुत बड़ा मॉल है। यहाँ पर बहुत चहल-पहल होती है। यहाँ पर सिनेमाहाल, तरह-तरह के व्यंजन तथा अन्य सामान मिलते हैं। यहाँ सुबह दस बजे से लेकर रात के दस बजे तक बहुत चहल-पहल होती है। यहाँ सब अपने परिवारों के साथ आते हैं। हम भी यहाँ जाते हैं। छुट्टी के दिन यहाँ जाना बहुत अच्छा लगता है।
  • मेरे घर से सड़क का दृश्य दिखाई देता है। सड़क पर सुबह से लेकर शाम तक असंख्य गाड़ियाँ चलती रहती हैं। यहाँ हमेशा चहल-पहल रहती है। रात के समय सड़क का नज़ारा देखना बहुत ही अच्छा लगता है। रोशनी से चमकती हुई सड़कों पर जब गाड़ियाँ चलती हैं, तो लगता है मानो तारे दौड़ रहे हों। इसे देखकर मैं कभी बोर नहीं होती। मेरा यह रोज़ का कार्य है।
  • हमारे घर के नज़दीक सरकारी इमारत बन रही है। यहाँ हमेशा मजदूर काम कर रहे होते हैं। बड़ी-बड़ी मशीनों में सीमेंट का घोल तैयार किया जाता है। उसे मज़दूर पंक्ति बनाकर इमारत बनने वाले स्थान पर पहुँचाते हैं।  वहाँ चारों ओर ईंट, रोड़ी, लोहे की सलाखें पड़ी होती हैं। मज़दूर के बच्चे उनपर खेल रहे होते हैं। वहाँ बहुत शोर होता है।

Question 1:

तुम्हारी देखी हुई नदी भी ऐसी ही है या कुछ अलग है? अपनी परिचित नदी के बारे में छूटी हुई जगहों पर लिखो –

………………………….. सी हमारी नदी …………………… धार

गर्मियों में ……………………., ………………………. जाते पार

Answer:

  चमकती   सी हमारी नदी   तेज इसकी  धार

गर्मियों में   इसके पानी में तैरकर,   घुसकर  जाते पार

Question 2:

कविता में दी गई इन बातों के आधार पर अपनी परिचित नदी के बारे में बताओ –

  • धार
  • पाट
  • बालू
  • कीचड़
  • किनारे
  • बरसात में नदी।

 

Answer:

धार – नदी में पानी की उठने वाली बड़ी-बड़ी लहरों को धार कहते हैं। बारिश में हमारी नदी की धार बहुत तेज़ हो जाती है।

पाट – वह स्थान जहाँ पर नदी की चौड़ाई बढ़ जाती है और उसके बल में विस्तार होता है, पाट कहलाता है। हमारी नदी का पाट बहुत चौड़ा है।

बालू – नदी के साथ जो चट्टानें बहती हुई आती हैं। नदी में उनके आपस में से टकराने से वो धीरे-धीरे पीसने लगती हैं। इस तरह उनका आकार छोटा होता जाता है और उनके पीसने पर जो रेत मिलती है, उसे ही बालू कहते हैं। नदी सागर में मिलने से पहले  बालू को वहीं पर छोड़ देती है। मुझे नदी की बालू में खेलना अच्छा लगता है। हमारी नदी के किनारे में जो बालू है उसमें बहुत से आकार के छोटे-बड़े और सुंदर पत्थर मिलते हैं। मैं हमेशा उन्हें एकत्र करती हूँ।

कीचड़ – नदी के किनारों पर नदी से निकलने वाली पानी मिली मिट्टी होती है। इसे ही नदी का कीचड़ कहते हैं। इस नदी के कीचड़ में जानवरों के खुरों और पक्षियों के पंजों के बड़े सुन्दर निशान बने होते हैं। मैं अकसर उन्हें देखने जाया करती हूँ। मेरे पैरों के निशान भी उसमें बनते हैं।

किनारे – नदी के दोनों ओर स्थित जमीन को नदी का किनारा कहते हैं। इन किनारे पर बैठकर नदी को देखना मुझे अच्छा लगता है। शाम के समय यहाँ का सौंदर्य देखने वाला होता है।

बरसात में नदी – हमारी नदी का बहाव बरसात के दिनों में बहुत बढ़ जाता है। नदी अन्य महीनों की तुलना में अधिक चौड़ी और पानी से लबालब भर जाती है।

Question 3:

तुम्हारी परिचित नदी के किनारे क्या-क्या होता है?

Answer:

हमारी परिचित नदी के किनारे धोबी कपड़े धोते हैं। बच्चे और बड़े नहाते हैं। किनारों पर सब्जियाँ उगाई जाती हैं। कुछ मंदिर भी बने हैं, जहाँ किनारों पर बैठकर पूजा-पाठ भी होता है।

Question 4:

तुम जहाँ रहते हो, उसके आस-पास कौन-कौन सी नदियाँ हैं? वे कहाँ से निकलती हैं और कहाँ तक जाती हैं? पता करो।

Answer:

हमारे आस-पास यमुना नदी है। यह हिमालय से निकलती है और समुद्र में जा मिलती है।

Question 1:

इसी किताब में नदी का ज़िक्र और किस पाठ में हुआ है? नदी के बारे में क्या लिखा है?

Answer:

इस किताब में नदी का ज़िक्र ‘नदी का सफ़र’ पाठ में हुआ है। जिसमें नदी के उद्गम, प्रपात, मुहाने, गहरी घाटी, गति, उसकी सहायक नदियों आदि के बारे में बताया गया है।

Question 2:

नदी पर कोई और कविता खोजकर पढ़ो और कक्षा में सुनाओ।

Answer:

इस प्रश्न का उत्तर छात्र स्वयं करें।

Question 3:

नदी में नहाने के तुम्हारे क्या अनुभव हैं?

Answer:

नदी में नहाने में बड़ा मजा आता है। शरीर में चुस्ती आती है। जोड़ खुल जाते हैं जिससे ताज़गी आ जाती है। थकान मिट जाती है।

Question 4:

क्या तुमने कभी मछली पकड़ी है? अपने अनुभव साथियों के साथ बाँटो।

Answer:

हाँ, हम नदी के किनारे पर गए और हमने वहाँ मछलियाँ पकड़ी। मछली पकड़ना बहुत अच्छा लगता है। हमने वहाँ तरह-तरह की मछलियाँ पकड़ी परन्तु वापस पानी में छोड़ दी क्योंकि उनको मारना हमें अच्छा नहीं लगा।

Question 1:

नदी की टेढ़ी-मेढ़ी धार?

Answer:

यह साँप की तरह लगती है।

Question 2:

किचपिच-किचपिच करती मैना?

Answer:

यह एक छोटी-सी चिड़िया जैसी लगती है।

Question 3:

उछल-उछल के नदी में नहाते कच्चे-बच्चे?

Answer:

मेढ़कों जैसे लगते हैं।

Question 1:

कविता के पहले पद को दुबारा पढ़ो। वर्णन पर ध्यान दो। इसे पढ़कर जो चित्र तुम्हारे मन में उभरा उसे बनाओ। बताओ चित्र में तुमने क्या-क्या दर्शाया?

Answer:

छात्र इस प्रश्न का उत्तर स्वयं करें।

Page No 136:

Question 5:

तेज़ गति

शोर

मोहल्ला

धूप

किनारा

घना

ऊपर लिखे शब्दों के लिए कविता में कुछ खास शब्दों का इस्तेमाल किया गया है। उन शब्दों को नीचे दिए अक्षरजाल में ढूँढ़ो।

धा

वे

टो

रो

ला

पा

 

Answer:

धा

वे

टो

रो

ला

पा

तेज़ गति – वेग

शोर – रोला

मोहल्ला – टोला

धूप – घाम

किनारा – पाट

घना – सघन

summary

‘छोटी-सी हमारी नदी में कवि रवींद्रनाथ ठाकुर बताते हैं कि हमारी एक नदी है जो छोटी है और जिसकी धार टेढ़ी-मेढ़ी है। गर्मियों में इसमें कम पानी होता है। अतः उसे पार करना आसान होता है। पानी बस घुटने भर तक ही होता है। बैलगाड़ी इसमें से आराम से गुजर जाता है। इस नदी के किनारे ऊँचे हैं और पाट ढालू है। इसके तल में बालू कीचड़ का नामोनिशान नहीं। इसके दूसरे किनारे पर ताड़ के वन हैं जिसकी छाँहों में ब्राह्मण टोला बसा है। वे नदी में नहाते हैं। और उसके बाद अगर समय बचा तो मछली भी मारते हैं। उनके घर की स्त्रियाँ बालू से बर्तन साफ करती हैं। फिर कपड़े धोती हैं। उसके बाद वे घर चली जाती है; वहाँ के काम करने। लेकिन जैसे ही आषाढ़ का महीना आता है खूब पानी बरसने लगता है। और यह नदी पानी से भर जाता है। तब इसकी धार बहुत तेज हो जाती है। इसकी कलकल की आवाज से चारों तरफ कोलाहल मच जाता है। बरसात के दौरान नदी में आँवरें भी देखने को मिलती हैं। लोग झुंड में वर्षा की उत्सव मनाते हैं।