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(क) लद्दाख जम्मू-कश्मीर राज्य में है। नक्शे में ढूँढ़ो कि लद्दाख कहाँ है और तुम्हारा घर कहाँ है?
(ख) अनुमान लगाओ कि तुम जहाँ रहते हो वहाँ से लद्दाख पहुँचने में कितने दिन लग सकते हैं और वहाँ किन-किन ज़रियों से पहुँचा जा सकता है?
(ग) किताब के शुरू में तुमने तिब्बती लोककथा ‘राख की रस्सी’ पढ़ी थी। नक्शे में तिब्बत को ढूँढ़ो।
(क) मानचित्र में देखो एक लाल घेरा दिल्ली को घेरे हुए है। दिल्ली में मेरा निवासस्थान है। दूसरा घेरा मानचित्र में लद्दाख की स्थिति को दर्शाता है।
(ख) हम दिल्ली में रहते हैं। यहाँ से हवाई यात्रा से लद्दाख पहुँचने में दो से तीन दिन लग सकते हैं। वहाँ कार, रेल, बस व वायुयान से पहुँचा जा सकता है।
(ग) मानचित्र में देखो।
इस वृत्तांत को पढ़ते-पढ़ते तुम्हें भी अपनी कोई छोटी या लंबी यात्रा याद आ रही हो तो उसके बारे में लिखो।
एक बार मैं हिमाचल प्रदेश की यात्रा पर गया था। शाम के समय मैं बस में बैठ गया और सुबह जब आँख खुली तो मैंने हमारी बस को हिमाचल प्रदेश की घुमावदार पहाड़ी रास्तों में पाया। वहाँ का रास्ता खतरनाक था। इन रास्तों में कहीं एक तरफ़ खाई थी, तो दूसरी तरफ़ पहाड़। ये बहुत भयानक लग रहे थे। कई घुमावदार रास्तों से निकलकर हम गाँव की तरफ पहुँचे। इन पहाड़ों पर बस की गति धीमी होती है। हम सुबह अपने गंतव्य स्थान पर पहुँचे, जहाँ से बर्फ़ीली चोटियाँ सूरज की रोशनी में सोने की तरह चमक रही थी। बहुत ही सुन्दर दृश्य था। इसको देखकर रास्ते की सारी थकावट दूर हो गई।
जवाहरलाल को अमरनाथ तक का सफ़र अधूरा क्यों छोड़ना पड़ा?
जवाहरलाल को अमरनाथ तक का सफ़र आधा छोड़ना पड़ा क्योंकि आगे जाने के लिए आवश्यक सामान नहीं था।
जवाहरलाल, किशन और कुली सभी रस्सी से क्यों बँधे थे?
जवाहर, किशन और कुली सभी रस्सी से इसलिए बँधे थे क्योंकि यदि वे पहाड़ से गिर जायें तो रस्सी के सहारे लटक कर बच सकें।
(क) पाठ में नेहरू जी ने हिमालय से चुनौती महसूस की। कुछ लोग पर्वतारोहण क्यों करना चाहते हैं?
(ख) ऐसे कौन-से चुनौती भरे काम हैं तो तुम करना पसंद करोगे?
(क) कुछ लोग पर्वतारोहण शौक व मनोरंजन के लिए करते हैं। ऐसे स्थानों पर जाना उनके लिए चुनौती होता है और उसे जीतना उनके जीवन का उद्देश्य होता है। कुछ लोगों के लिए यह जीविका का साधन होती है।
(ख) विद्यालय में सबसे अधिक अंक लाना, खेलों में प्रथम आना, तैराकी, कुछ साहासिक कार्य करना मैं पसंद करूँगी।।
क) बर्फ़ से ढके चट्टानी पहाड़ों के उदास और फीके लगने की क्या वजह हो सकती थी?
(ख) बताओ, ये जगहें कब उदास और फीकी लगती हैं और यहाँ कब रौनक होती है?
घर | बाज़ार | स्कूल | खेत |
(क) बर्फ़ से ढके चट्टानी पहाड़ों के उदास और फीके लगने की वजह वहाँ पर हरियाली का बर्फ़ से ढक जाना होता है।
(ख) घर – जब सब घर में मिलजुल कर एक साथ रहते हैं, तो रौनक होती है। सब लोग बाहर चले जाएँ या आपस में न बोले तो फीका लगता है।
बाज़ार – बाज़ार लगने पर रौनक लगती है और बाज़ार समाप्त होने लगता है, तो फीका लगता है।
स्कूल – जब स्कूल लगा होता है, तो रौनक रहती है। जब स्कूल में छुट्टी होती है, तो फीका लगता है।
खेत– खेतों में जब फसल लहलहाने लगती है और किसान उसमें काम कर रहे होते हैं, तो रौनक रहती है। खेत कट जाने पर फीके लगते हैं।
‘जवाहरलाल को इस कठिन यात्रा के लिए तैयार नहीं होना चाहिए।’
तुम इससे सहमत हो तो भी तर्क दो, नहीं हो तो भी तर्क दो। अपने तर्कों को तुम कक्षा के सामने प्रस्तुत भी कर सकते हो।
हम इस कथन से सहमत हैं। वह एक ज़िम्मेदार व्यक्ति थे। भारत को उनकी बहुत आवश्यकता थी। इसके साथ ही रास्ता दुर्गम था। उनके पास इस रास्ते पर जाने के लिए पर्याप्त सामान नहीं था। सबसे महत्वपूर्ण बात जवाहरलाल इस रास्ते पर चलने के अभ्यस्त नहीं थे। उन्हें इन सभी समस्याओं पर विचार करना चाहिए था और तभी वहाँ जाना चाहिए था। अत: जवाहर लाल को इस कठिन यात्रा के लिए तैयार नहीं होना चाहिए था।
‘कोलाज’ उस तस्वीर को कहते हैं जो कई तस्वीरों को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर एक कागज़ पर चिपका कर बनाई जाती है।
तुम मिलाकर पहाड़ों का एक कोलाज बनाओ। इसके लिए पहाड़ों से जुड़ी विभिन्न तस्वीरें इकट्ठा करो- पर्वतारोहण, चट्टान, पहाड़ों के अलग-अलग नज़ारे, चोटी, अलग-अलग किस्म के पहाड़। अब इन्हें एक बड़े से कागज़ पर पहाड़ के आकार में ही चिपकाओ। यदि चाहो तो ये कोलाज तुम अपनी कक्षा की एक दीवार पर भी बना सकते हो।
इस प्रश्न का उत्तर छात्र स्वयं करें।
‘कोलाज’ उस तस्वीर को कहते हैं जो कई तस्वीरों को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर एक कागज़ पर चिपका कर बनाई जाती है।
अब इन चित्रों पर आधारित शब्दों का एक कोलाज बनाओ। कोलाज में ऐसे शब्द हों जो इन चित्रों का वर्णन कर पा रहे हों या मन में उठने वाल भावनाओं को बता रहे हों। अब इन दोनों कोलाजों को कक्षा में प्रदर्शित करो।
इस प्रश्न का उत्तर छात्र स्वयं करें।
“उदास होना” और “चुनौती देना” मनुष्य के स्वभाव हैं। यहाँ निर्जीव पहाड़ ऐसा कर रहे हैं। ऐसे और भी वाक्य हैं। जैसे –
इस किताब के दूसरे पाठों में भी ऐसे वाक्य ढूँढ़ो।
अन्य वाक्य इस प्रकार हैं-
1. बर्फ़ चुपचाप गिर रही थी।
2. जिसकी नंगी शाखों पर रूई के मोटे-मोटे गालों सी बर्फ चिपक गई थी।
3. नीले चमचमाते आकाश के नीचे बर्फ़ से ढकी पहाड़ियाँ धूप सेंकने के लिए अपना चेहरा बादलों के बाहर निकाल लेती है।
एकबार जवाहरलाल नेहरू अपने चचेरे भाई के साथ कश्मीर घूमने निकले थे और जोज़ीला पास से होकर लद्दाखी इलाके की ओर चले आए थे। उन्हें अमरनाथ जाना था। किशन गड़ेरिया ने उन्हें रास्ते की मुश्किलों के बारे में बताया लेकिन इसका उन पर कोई असर नहीं हुआ। मुश्किलों के बारे में सुनकर सफर के लिए वे और भी उत्सुक हो गए। उनके साथ कुली तो था ही, किशन और उसकी बेटी भी उसके साथ जाने को तैयार हो गई। अगले दिन सुबह-सुबह जवाहरलाल नेहरू तैयार होकर बाहर आ गए। तिब्बती पठार का दृश्य निराला था। दूर-दूर तक वनस्पति रहित उजाड़ चट्टानी इलाका दिखाई दे रहा था। सर्द हवा के झोंके हड्डियों तक ठंडक पहुँचा रहे थे। जवाहरलाल जी ने हथेलियाँ आपस में रगड़कर गरम कीं और कमर में रस्सी लपेटकर चलने को तैयार हो गए। हिमालय की दुर्गम पर्वतमाला एक बड़ी चुनौती थी जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार किया। किशन गड़ेरिया उनका गाइड बन गया। जवाहरलाल ने आठ मील की चढ़ाई चढ़नी शुरू कर दी। आठ मील की दूरी कोई बहुत नहीं होती, लेकिन इन पहाड़ी रास्तों पर आठ कदम चलना मुश्किल लगने लगा। रास्ता सुनसान था। चारों तरफ बस पथरीली चट्टानें और सफेद बर्फ दिख रहे थे। जवाहरलाल बढ़ते जा रहे थे। ज्यों-ज्यों ऊपर चढ़ते गए, त्यों-त्यों साँस लेने में दिक्कत होने लगी। कुली के नाक से खून बहने लगा। जल्दी से जवाहरलाल ने उसका उपचार किया। थोड़ी देर में बर्फ पड़ने लगी और फिसलन बढ़ गई। चलना दुभर होने लगा। थकान से अलग बुरा हाल हो रहा था। तभी सामने बर्फीला मैदान नजर आया जो शीघ्र ही बर्फ के धुंधलके में ओझल हो गई। सुबह चार बजे से चढ़ाई करते-करते दिन के बारह बजे तक वे लगभग सोलह हज़ार फ़ीट की ऊँचाई पर आ गए। किन्तु अभी भी अमरनाथ की गुफा का कुछ पता नहीं चल पा रहा था। जवाहरलाल अपने बुलंद इरादों के साथ हिमालय को चुनौती देते हुए दुर्गम पथ पार करने में जुटे थे। कुली ने उन्हें वापस कैंप में चलने की सलाह दी। लेकिन जवाहरलाल लौटने के बारे में जरा भी सोच नहीं सकते थे। उन्हें अमरनाथ पहुँचना था। तभी किशन ने बताया कि अमरनाथ की गुफा तो दूर बर्फ के मैदान के पार है। फिर तो जवाहरलाल में और भी जोश आ गया। वे फुर्ती से बढ़ने लगे। आगे उन्हें गहरी खाइयाँ, बर्फ से ढंके गड्ढे और फिसलन मिली। कभी पैर फिसलता तो कभी बर्फ में पैर अंदर पॅसता जाता। चढ़ाई मुश्किल थी लेकिन जवाहरलाल को इसमें मजा आ रहा था। अचानक उन्हें एक बड़ी गहरी खाई दिखी। इसके पहले कि वे अपने को सँभालते, लड़खड़ाकर खाई में गिर पड़े। रस्सी से बँधे वे हवा में लटकने लगे। रस्सी ही उनका एकमात्र सहारा था जिसे वे कसकर पकड़े थे। साथ के लोगों ने रस्सी खींचकर उन्हें बाहर निकालने की बात सोची। लेकिन जवाहरलाल ने उन्हें ऐसा नहीं करने दिया। उन्होंने खाई की दीवार से उभरी चट्टान को मजबूती से पकड़ लिया और पथरीले धरातल पर पैर जमा लिए। पैरों तले धरती के एहसास से जवाहरलाल की हिम्मत बढ़ गई। फिर स्वयं के प्रयास और कुली एवं किशन के सहयोग से वे किसी तरह ऊपर पहुँच गए। कपड़े झाड़कर वे फिर चलने को तैयार हो गए। लेकिन आगे गहरी और चौड़ी खाइयों की संख्या बहुत थी। खाइयाँ पार करने का उचित सामान भी किसी के पास न था। इस कारण जवाहरलाल को अमरनाथ तक का सफर अधूरा छोड़कर वापस लौटना पड़ा।