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प्रश्न 1.
कँवरसिंह कौन है? उसके एक बेटे की मौत कैसे हुई?
उत्तर:
कॅवरसिंह भारतीय डाक सेवा में डाक सेवक है जो हिमाचल प्रदेश के शिमला जिले के नेरवा गाँव का निवासी है। उसकी उम्र पैंतालीस साल है। उसके चार बच्चे हैं-तीन लड़कियाँ और एक लड़का। दो लड़कियों की शादी हो चुकी है। उसका एक और बेटा था जो गाँव में एक पहाड़ी से लकड़ियाँ लाते हुए गिर गया जिससे उसकी मौत हो गई।
प्रश्न 2.
कँवरसिंह को डाकसेवक के रूप में कौन-कौन से काम करने होते हैं?
उत्तर:
चिट्ठियाँ, रजिस्ट्री पत्र, पार्सल, बिल, बूढ़े लोगों की पेंशन आदि छोड़ने कँवरसिंह को गाँव-गाँव जाना होता है।
प्रश्न 3.
गाँवों में डाकिए का बड़ा आदर और सम्मान किया जाता है। क्यों?
उत्तर:
क्योंकि वहाँ पर आज भी संदेश पहुँचाने का सबसे बड़ा ज़रिया डाक ही है। गाँव के लोग अपनी चिट्ठी आदि पाने के लिए डाकिए का इंतजार करते हैं।
प्रश्न 4.
आप कैसे कह सकते हैं कि कँवरसिंह को अपनी नौकरी बहुत अच्छी लगती है?
उत्तर:
कँवरसिंह को अपनी नौकरी बहुत अच्छी लगती है क्योंकि इस नौकरी की बदौलत उसे मनीआर्डर पहुँचाने पर, रिजल्ट या नियुक्ति पत्र पहुँचाने पर, पेंशन पहुँचाने पर लोगों का खुशी भरा चेहरा देखने को मिलता है।
प्रश्न 5.
पहाड़ी इलाकों में डाक पहुँचाने में केंवरसिंह को किन मुश्किलों का सामना करना पड़ता है?
उत्तर:
पहाड़ी इलाकों में ठंड बहुत पड़ती है। हिमाचल प्रदेश के कुछ जिले जैसे किन्नोर और लाहौल स्पीति में तो अप्रैल महीने में भी बर्फबारी हो जाती है। बर्फ में चलते हुए कँवरसिंह को अपने पैर ठंड से बचाने पड़ते हैं क्योंकि स्नोबाइट का डर रहता है। इन जिलों में उसे एक घर से दूसरे घर तक डाक पहुँचाने के लिए लगभग 26 किलोमीटर
रोजाना चलना पड़ता है।
प्रश्न 6.
कँवरसिंह को ‘बेस्ट पोस्टमैन’ की उपाधि क्यों और कब मिली?
उत्तर:
अपनी जान पर खेलकर डाक की चीजें बचाने के लिए भारत सरकार ने उसे ‘बेस्ट पोस्टमैन’ का इनाम दिया। यह इनाम उसे 2004 में मिला। इस इनाम में 500 रुपये और प्रशस्ति पत्र मिला।
शिमला के मालरोड पर स्थिति जनरल पोस्ट ऑफिस के एक कमरे में डाक छाँटने का काम चल रहा है। सुबह के 11:30 बजे हैं। डाक छाँटने का काम दो पैकर और तीन महिला डाकिया कर रहे हैं। वहीं पर विराजमान हैं कँवरसिंह, जिन्हें भारत सरकार से पुरस्कार मिल चुका है। हमारी लेखिका प्रतीमा शर्मा ने उनसे बातचीत की जिसे संक्षेप में नीचे दिया जा रहा है- कँवरसिंह हिमाचल प्रदेश के शिमला जिले के नेरवा गाँव के निवासी हैं। उनकी उम्र पैंतालीस साल है। उनके चार बच्चे हैं–तीन लड़कियाँ और एक लड़का। दो लड़कियों की शादी हो चुकी है। उनके गाँव में अभी तक बस नहीं पहुँच पाती है। हिमाचल में हजारों ऐसे गाँव हैं जहाँ पैदल चलकर ही पहुँचा जा सकता है। कँवरसिंह के बच्चे गाँव के स्कूल में पढ़ने जाते हैं जो लगभग पाँच किलोमीटर दूर है। पहले वे भारतीय डाक सेवा में ग्रामीण डाक सेवक थे। अब वे पैकर हैं। लेखिका द्वारा यह पूछने पर कि उन्हें क्या-क्या करना होता है, कँवरसिंह ने बताया कि वे चिट्ठियाँ, रजिस्टरी पत्र, पार्सल, बिल, बूढ़े लोगों की पेंशन आदि छोड़ने गाँव-गाँव जाते हैं। सूचना और संदेश देने के बहुत से नए तरीके आ जाने के बावजूद गाँव में आज भी संदेश पहुँचाने का सबसे बड़ा साधन डाक ही है। हमारे देश की डाक सेवा आज भी दुनिया में सबसे बड़ी डाक सेवा है और सबसे सस्ती भी। यह पूछने पर कि क्या उन्हें अपनी नौकरी में मजा आता है; उन्होंने बताया कि बेशक उन्हें अपनी नौकरी अच्छी लगती है क्योंकि उन्हें मनीआर्डर पहुँचाने पर, नियुक्ति पत्र का रजिस्टरी पत्र पहुँचाने पर, पेंशन पहुंचाने पर लोगों का खुशी भरा चेहरा देखने को मिलता है। प्रारंभ में उसने लाहौल स्पीति जिले के किब्बर गाँव में तीन साल नौकरी की इसके बाद पाँच साल तक इसी जिले के काज़ा में और पाँच साल तक किन्नौर जिले में नौकरी की। गाँवों में डाकसेवक का बहुत मान किया जाता है। पहाड़ी इलाकों में डाक पहुँचाना काफी मुश्किल काम है किन्नौर और लाहौल स्पीति हिमाचल प्रदेश के बहुत ठंडे तथा ऊँचे जिले हैं। इन जिलों में उसे एक घर से दूसरे घर तक डाक पहुँचाने के लिए लगभग 26 किलोमीटर रोज़ाना चलना पड़ता था। कँवरसिंह अभी पैकर हैं। डाकिया बनने के लिए एक इम्तिहान पास करना पड़ता है। फिलहाल पैकर के काम के हिसाब से उनका वेतन काफी कम है। सारा दिन कुर्सी पर बैठकर काम करने वाले बाबू का वेतन कहीं ज्यादा है। डाकियों पर काम का बोझ बहुत ज्यादा रहता है। जब लेखिका ने कँवरसिंह से पूछा कि काम के दौरान क्या कभी कोई खास बात हुई है, तो उसने एक घटना सुनाना शुरू कर दिया, जो इस प्रकार है “तब मेरा तबादला शिमला के जनरल पोस्ट ऑफिस में हो गया था। वहाँ मुझे रात के समय रेस्ट हाउस और पोस्ट ऑफिस चौकीदारी का काम दिया गया था। यह 29 जनवरी 1998 की बात है। रात लगभग साढ़े दस बजे का समय था। किसी ने दरवाजा खटखटाया। खोलने पर पाँच-छह लोग अंदर घुस आए और मुझे पीटना शुरू कर दिए। मेरा सिर फट गया और मैं बेहोश हो गया। अगले दिन जब मुझे होश आया तो मैं शिमला के इंदिरा गाँधी मेडिकल कॉलेज के अस्पताल में दाखिल था। मेरे सिर पर कई टाँके लगे थे। उसकी वजह से आज भी मेरी एक आँख से दिखाई नहीं देता।” सरकार ने जान पर खेलकर डाक की चीजें बचाने के लिए उसे ‘बेस्ट पोस्टमैन’ का इनाम दिया। यह इनाम 2004 में मिला। इस इनाम में 500 रुपये और प्रशस्ति पत्र मिला। कँवरसिंह को इस बात पर गर्व है कि वह ‘बेस्ट पोस्टमैन’ है।